विदेशों में हो रहे भारतीयों पर अत्याचार को लेकर लोगों ने उठाई आवाज
People raised their voice regarding atrocities on Indians in foreign countries: कतर में महीने भर चलने वाले फुटबॉल विश्व कप के लिए हाई-टेक स्टेडियम और बुनियादी ढांचा बनाने का काम करने के लिए हजारों प्रवासी भारतीय श्रमिकों को नौकरी पर रखा गया था। मानवाधिकार समूह इक्विडेम के मुताबिक इन भारतीय और अन्य एशियाई प्रवासियों ने अमानवीय स्थितियों में काम किया। द गार्जियन ने 10 नवंबर की अपनी रिपोर्ट में बताया है, ‘इक्विडेम का निष्कर्ष है कि कतर स्टेडियम के लिए काम करने वाले मजदूर ‘प्रतिकूल परिस्थितियों’ में रहे हैं। रिपोर्ट के लिए जिन मजदूरों से बात की गई, उनमें से कइयों ने शोषण का सामना किया और उन्हें डर और अपराध से भरे माहौल में काम करना पड़ा। उनके साथ राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव हुआ, कार्यस्थल पर हिंसा हुई, अपशब्द सहने पड़े और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया।’
इक्विडेम ने यह भी आरोप लगाया कि स्टेडियम का निर्माण करने वाली कंपनियां निरीक्षण से बचती रहीं। लुसैल स्टेडियम के लिए काम कर चुके एक नेपाली कर्मचारी के हवाले से बताया गया कि जब फीफा समूह निरीक्षण के लिए आने वाला था, तब मजदूरों को उनके कैंप में भेज दिया गया। मजदूरों को शिकायत करने का मौका ही नहीं दिया गया। कंपनी ने यहां तक जांचा कि कोई साइट पर छिपकर तो नहीं बैठा है। मजदूर ने बताया कि जो छिपा हुआ पाया गया, उसे या तो घर वापस भेज गिया गया या उसका वेतन काट लिया गया। इक्विडेम के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर मुस्तफा कादरी कहते हैं, ‘जिन मजदूरों ने स्टेडियम बनाए हैं, उनका पैसा चोरी हो गया और उनकी जिंदगी बर्बाद कर दी गई। फीफा इससे मुंह नहीं फेर सकता और उन्हें इनकी भरपाई के लिए पैसा देना चाहिए।’
सिर्फ कतर में ही ऐसा नहीं हुआ। पूरे मध्य पूर्व के देशों में एशिया से आए प्रवासी श्रमिक मुश्किल हालात में रहते और काम करते हैं। कई अरब शेखों के “इलाकों या राज्य में स्थानीय आबादी कम है। यूएई की जनसंख्या एक करोड़ है। इसमें केवल 15 लाख ही अमीरात के निवासी हैं। बाकी प्रवासी हैं। इनमें लगभग 30 लाख भारतीय हैं। अरब शेखों के इलाकों में काम करने वाले भारतीय प्रवासियों के विपरीत अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में भारतीय पेशेवरों की आय सभी जनसांख्यिकीय समूहों में सबसे ज्यादा है।
भारतीय मूल के लोगों की बढ़ती संपत्ति और प्रभाव ने कई भारतवंशियों को राजनीति में किया शामिल
सिलिकॉन वैली भारतीय मूल के इंजीनियरों से भरी है। इसमें स्टार्टअप से लेकर गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, आईबीएम, एडोबी सहित तमाम बड़ी कंपनियों के लिए काम करने वाले सॉफ्टवेयर कोडर शामिल हैं। भारतीय मूल के लोगों की बढ़ती संपत्ति और प्रभाव ने कई भारतवंशियों को राजनीति में शामिल होने के लिए प्रेरित किया है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस तो महज दो उदाहरण हैं। जो बाइडेन प्रशासन में दर्जनों भारतवंशी के नीति- निर्धारक हैं। कनाडा में प्रधानमंत्री जस्टिन ट्र्डो ने भी अपने मंत्रिमंडल में कई भारतीय मूल के मंत्रियों को नियुक्त किया है। ब्रिटेन में 650 सीटों वाले हाउस ऑफ कॉमन्स में भारतीय मूल के 15 सदस्य हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत पहले ही भारत के 3 करोड़ प्रवासियों की शक्ति को पहचान लिया था। लगभग 50 लाख भारतीय मूल के प्रवासी अमेरिका और ब्रिटेन में रहते हैं। इनमें से कई व्यापार, राजनीति और शिक्षा के क्षेत्र में नेतृत्व के पदों पर हैं। इन देशों की यात्रा के दौरान प्रवासी भारतीयों के साथ बातचीत मोदी की प्राथमिकता होती है। उदाहरण के लिए, पिछले सप्ताह बाली में जी20 शिखर सम्मेलन में मोदी ने एक पूरी शाम भारतीय प्रवासियों को संबोधित करने के लिए समर्पित की। लेकिन क्या भारत के 3 करोड़ प्रवासियों के पास वैश्विक स्तर पर एक आवाज है? क्या वे प्रमुख मुद्दों पर बोलते हैं? विदेशों में रह रहे और काम कर रहे भारतीयों ने पिछले साल 90 अरब डॉलर भारत भेजे। साल 2023 में यह आंकड़ा 100 अरब डॉलर से ज्यादा होने की संभावना है। इससे भारत के भुगतान संतुलन घाटे को कम करने में मदद मिलेगी, जो कच्चे तेल की ऊंची कीमतों के कारण बढ़ गया है।
लेकिन अपनी संपत्ति और प्रभाव के बावजूद प्रवासी भारतीय विवादास्पद मुद्दों को उठाने में हिचकते हैं। कनाडा में खालिस्तानी अलगाववादियों को छूट देने वाले जस्टिन ट्रूडो को सरकार से बाहर करने के लिए भारतीयों ने बहुत कम प्रयास किए हैं। ब्रिटेन में भी भारतीय समुदाय लेस्टर में हिंदू मंदिरों पर किए हमलों के खिलाफ मजबूती से खड़ा नहीं हुआ। जबकि यह झूठ फैलाया गया था कि हिंदुत्व तत्वों ने हिंसा भड़काई थी|