Prostitution Law in India: हाल के निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा सेक्स वर्क को काम के रूप में मान्यता प्रदान की .इसके साथ- साथ सेक्स वर्करों को गरिमापूर्ण जीवन जीने का हक और कानून के अंदर समान संरक्षण का अधिकार प्रदान किया .यह निर्णय अनुच्छेद 142 के तहत पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए पारित किया.इससे पहले 2020 में national human right Commission के द्वारा भी सेक्स वर्करों को इनफॉरमल सेक्टर में लगे वर्करों की तरह मान्यता प्रदान की थी.
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का मुख्य प्रावधान
-(1 ) अन्य क्षेत्रों में काम कर रहे वर्करों की तरह सेक्स वर्कर को भी कानून के समक्ष समान संरक्षण प्राप्त हो. ( यदि सेक्स वर्कर वयस्क है और अपनी मर्जी से सेक्सुअल सर्विसेज प्रदान करती है तो पुलिस को उनके काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए एवं उनके विरुद्ध कोई भी आपराधिक मामला दर्ज नहीं होनी चाहिए )
(2) कोठा चलाना गैर कानूनी काम है किंतु स्वेच्छा से सेक्सुअल वर्क प्रदान करना कानूनी है । दोनों को अलग अलग तरीके से देखना चाहिए ।
(3)कोठा पर सेक्स वर्क प्रदान करने वाली महिलाओं के बच्चों को मानव तस्करी की आशंका में उन्हें अलग ना किया जाए भले ही उनका डीएनए टेस्ट करवा कर उनकी पहचान सुनिश्चित की जाए ।
(4), यौन उत्पीड़न के शिकार सेक्स वर्करों को भी चिकित्सा सुविधा प्रदान की जाए । अक्सर देखा जाता है कि पुलिस और हॉस्पिटल स्टाफ इनसे अच्छा व्यवहार नहीं करते है।
( 5) छापे के दौरान मीडिया थोड़ी संयम बरतें उनकी पहचान को उजागर ना करें पुलिस भी इनसे सम्मानपूर्वक व्यवहार करें।
भारत वैश्यावृत्ति पर क्या कानून है ?
The Immoral Traffic (Prevention) Act, 1956 सेक्स वर्क को (penalised) यानी दंड का प्रावधान करता है.इस अधिनियम के अंतर्गत सेक्स वर्क अपराधिक कृत है. लेकिन 2011 में बुद्धदेव बनाम बंगाल राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा , दिए एक फैसले में सेक्स वर्करों को गरिमा पूर्ण जीवन जीने का हक है.और केंद्र सरकार को आदेश दिया कि कानून में बदलाव करें किंतु अभी तक सरकार के द्वारा कोई फैसला नहीं लिया गया है .एक ऐसे ही मामले में जस्टिस वर्मा कमिशन के द्वारा 2012 में वॉलंटरी सेक्स वर्क और ट्रैफिकिंग से आई महिलाओं मे हमें फर्क महसूस करना जरूरी जो.
वर्तमान में हमारी सरकार मानकर चलती है कि सेक्स वर्क में लगी महिलाओं का यौन उत्पीड़न होता है और यह अपनी मर्जी से काम नहीं करती हैं. इन वजहों से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पहले यह एक आपराधिक कृत्य था. इस वजह से सेक्स वर्करों को बहुत ज्यादा चुनौती का सामना करना पड़ता है :-
(1) इनके अधिकार ,अस्तित्वहिन है .
(2) अगर इनका रेप् भी हो जाता है तो पुलिस इनसे गंदे तरीके से व्यवहार करती है ,और इनको गंभीरता से नहीं लिया जाता है.
( 3) हमारे देश में सेक्स वर्क को लेकर एक stigma है. हमारा समाज इसे अच्छे ढंग से नहीं देखता है यहां तक की इन्हें रहने के लिए कमरा भी प्रदान नहीं किया जाता है और दिया भी जाता है तो इनका शोषण होता है .मजबूरन इनको कोठे पर आना पड़ता है.
( 4) दूसरे क्षेत्र में लगे वर्करों के, भांति इनको बुनियादी मनवीय ,श्रम और स्वास्थ्य अधिकार नही प्राप्त है.
( 5) सेक्स वर्करों को गाली गलौज, मानसिक शोषण ,परिवारिक शोषण का सामना करना पड़ता है
उपरोक्त समस्याओं के मद्देनजर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय महत्वपूर्ण है .अब समय आ गया है कि सेक्स वर्क को नैतिक रूप से गलत ना माने अब हमारा समाज sc के निर्णय के बाद इसे श्रम के दृष्टिकोण से देखे और सरकार भी इस पर कानून बनाए